धेनु धरती फाउंडेशन
गो से कृषि - गो से ऋषि
जय गो माता
|| ॐ करणी ||
जय गुरुदाता
फाउंडेशन के सदस्य

हमारे बारे में संक्षिप्त में जानकारी
वर्तमान समय मे पूरी दुनिया मानसिक, शारीरिक, वैचारिक, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से जूझ रही है। इसका प्रमुख कारण है तमोगुण, जो की गोवंश और प्रकृति का सदुपयोग किए बिना हानिकारक कृत्रिम विषैले उर्वरक, कीटनाशक का अंधाधुंध प्रयोग करना। एक के बाद एक लगातार खेत को आराम दिए बिना फसल लेना, लगातार खेती करना, डीजल और विद्युत चलित यंत्र का अधिक और अनावश्यक प्रयोग जिससे तमोगुणी, रोग उत्पन्न करने वाले कृषि और गो कृपा रहित डेयरी उत्पादयुक्त भोज्य पदार्थों का उपयोग है।इनका उपयोग मानव के स्वास्थ्य और मन के लिए तो हानिकारक होता ही हैं। साथ ही साथ प्रकृति और खेतों के लिए भी हानिकारक हैं।इसके कारण खेत बांझ हो रहे हैं। प्रकृति असंतुलित हो रही हैं। इन सब समस्याओं का एक मात्र समाधान है गो
प्रकृति आधारित “ऋषि कृषि “
ऋषि कृषि का परिचय (ऋषि कृषि क्या है)
ऋषि कृषि एक पारंपरिक भारतीय कृषि पद्धति है, जो प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा विकसित की गई थी। यह पूरी तरह से प्राकृतिक, जैविक और पर्यावरण-अनुकूल कृषि प्रणाली है, जिसमें कृत्रिम, हानिकारक, विषयुक्त रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता। इसे आध्यात्मिक कृषि भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें प्रकृति और परमात्मा से जुड़कर खेती करने पर बल दिया जाता है। ऋषि कृषि के मुख्य सिद्धांतो में हानिकारक विषैले कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और संकर बीजों का उपयोग न करके केवल गो -प्रकृति आधारित साधनों से खेती करना। मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए जैविक खाद (गोबर, गौमूत्र, जीवामृत, पंचगव्य) का उपयोग करना, पंचतत्वों का संतुलन बनाये रखने हेतु ऋषि कृषि को पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) के संतुलन के अनुसार ही किया जाता है।
इसमें जल का उचित प्राकृतिक प्रबंधन रहता हैं ।इसमें अधिकाधिक प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग होता हैं, जिसमें मुख्यतः देसी (क्षेत्रीय, प्राचीन नस्ल) के बैल काम में लिए जाते हैं। बैल से हल और अन्य कृषि यंत्र चलाने की परंपरा को बढ़ावा दिया जाता है।
उन्ही गोवंश के गोबर और गौमूत्र का उपयोग खाद और कीट- खदेड़क के रूप में हो जाता हैं। पारंपरिक और बीज के रूप में देसी बीजों का उपयोग और संरक्षण की प्रणाली अपनाई जाती है, जिससे हाइब्रिड बीजों पर निर्भरता कम हो जाये और आगे निर्भरता पूर्ण समाप्त हो जाये। इसमें सह-फसली और मिश्रित खेती को बढ़ावा दिया जाता है। एक ही खेत में कई फसलों को एक साथ मिलाकर उगाया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे कीट पतंग का प्रकोप कम होता हैं। विविधीकरण करने से कीटों और बीमारियों का खतरा कम होता है। योग और आध्यात्मिकता से जुड़ी कृषि क्रियाओं से खेती को आध्यात्मिक साधना की तरह करने से, भूमि, पौधों और पर्यावरण को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। प्राचीन वैदिक मंत्रों और यज्ञों का प्रयोग भूमि की उर्वरता और पर्यावरण शुद्धिकरण के लिए किया जाता है। जल और पर्यावरण संरक्षण हेतु वर्षा जल संचयन और प्राकृतिक सिंचाई प्रणालियों का उपयोग अधिकाधिक किया जाता है। मिट्टी और जल को शुद्ध और संतुलित बनाए रखना भी इस प्रणाली का महत्वपूर्ण कार्य हैं। ऋषि कृषि पद्धति से उत्पादित अनाज, फल और सब्ज़ियाँ पूरी तरह से प्राकृतिक और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जो कैंसर, हृदय रोग और अन्य बीमारियों का खतरा कम करते है। कम लागत, अधिक उत्पादन की परम्परा को पुनः विकसित किया जाता है। रासायनिक उर्वरकों और महंगे कीटनाशकों की जगह घरेलू जैविक साधनों का उपयोग होता है, जिससे लागत कम होती है।
इससे मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहने से उत्पादन में निरंतरता आती है। पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता का मूल आधार ऋषि कृषि ही हैं। हानि कारक कृत्रिम रसायनों के बिना खेती करने से जल, वायु और भूमि प्रदूषण कम होता है। पक्षी, मधुमक्खियाँ, केंचुए और अन्य लाभकारी जीवों का संरक्षण होता है। ऋषि कृषि केवल खेती का एक तरीका नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली है, जो प्रकृति, आध्यात्मिकता और सतत कृषि को संतुलित करती है। यह भारतीय संस्कृति की प्राचीन विरासत है, जिसे अपनाने से मानव, पर्यावरण और धरती सभी को लाभ मिलता है। धेनु धरती फाउंडेशन इसी दिशा में कार्य करने के लिए दृढ़ संकल्पित है।
आइए, हम सब मिलकर गौ आधारित कृषि (ऋषि कृषि) को अपनाएं और अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य दें।
“गौ माता का करें सम्मान।
ऋषि कृषि है सबसे आसान।।”

धेनु धरती फाउंडेशन का विज़न
Vision of Foundation:-
प्राचीन काल से ही भारत में गोधन को मुख्य धन मानते आए हैं और हर प्रकार से गौरक्षा, गौ–सेवा एवं गौ–पालन पर ज़ोर दिया जाता रहा है। हमारे हिन्दू शास्त्रों, वेदों में गौरक्षा, गौ महिमा, गौ–पालन आदि के प्रसंग भी अधिकाधिक मिलते हैं। रामायण, महाभारत, भगवद्गीता में भी गाय का किसी न किसी रूप में उल्लेख मिलता है। गाय, भगवान श्री कृष्ण को अतिप्रिय है। गौ पृथ्वी का प्रतीक है। गौमाता में सभी देवी–देवताविद्यमानरहतेहैं।सभीवेदभीगौमातामेंप्रतिष्ठितहैं।
[ वराह पुराण २०४–२०]
इदमेवापरम् चैव चित्रगुप्तस्य भाषितम् ।सर्वदेवमयादेव्यःसर्ववेदमयास्तथा।।
अर्थ :- ( सूत जी महाराज शौनकादिक ऋषियों को कथा सुना रहे हैं)
(भगवान वाराह, माता पृथ्वी को कथा सुना रहे हैं)
चित्रगुप्त जी कहते हैं कि यह गौमाता स्वरूप देवीयाँ सर्वदेवमय और सर्ववदमय है।
जो गौओं की सेवा करता है और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौ माता उसे अत्यन्त दुर्लभ वर प्रदान करती हैं। जो मनुष्य जितेन्द्रिय और प्रसन्नचित्त होकर नित्य गौओं की सेवा करता है, वह समृद्धि का भागी होता है। गायों की सेवा से मनुष्य निर्मल और दुःख तथा शोकरहित श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त करता है।
जो कोई भक्त भक्ति भाव से गो सेवा करता हैं, वो सब पापों से रहित हो जाया करते हैं।
वेद भगवान् का निर्देश है कि यदि किसी को इस माया–राज्य में सब प्रकार का वैभव प्राप्त करना है, तो गौमाता की प्रमुख रूप से सेवा करे।
अतएव मानवों को गौ माता की सेवा करने के वेद भगवान् का आदेश हुआ। जो व्यक्ति सब प्रकार से अपना कल्याण चाहता हो, वह वेद भगवान् के आदेश का पालन करें।
अतः वेद भगवान के आदेश की पालना करते हुए गो से ही समस्त जगत का कल्याण संभव हैं, इस भाव को ध्यान में रखकर समस्त विश्व को गौ–सेवा के लिए प्रेरित करने के लिए धेनु धरती फाउंडेशन नामक गौ–सेवी संस्था का निर्माण किया गया है ताकि अधिक से अधिक धर्मपरायण लोग गौ–सेवा का लाभ ले सके।