धेनु धरती फाउंडेशन

गो से कृषि - गो से ऋषि

जय गो माता
|| ॐ करणी ||
जय गुरुदाता

धेनु धरती फाउंडेशन मुख्य उद्देश्य

हमारे प्रमुख उद्देश्य:-
 १. ऋषि कृषि की पुनः स्थापना ।  
२. ऋषि परंपरा की पुनः स्थापना।
३. धेनु धरती फाउंडेशन के माध्यम से गोबर, गोमूत्र, बैल और प्रकृति आधारित कृषि विज्ञान (ऋषि-कृषि विज्ञान) को पुनः विकसित करना। 
४. ऋषि कृषि (गौ प्रकृति आधारित कृषि) व्यवस्था को स्थापित करने के लिए देशभर में जागरूकता अभियान चलाना।
५. ऋषि- कृषि करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण देना।
६. ऋषि- कृषि (गौ-प्रकृति आधारित कृषि) हेतु स्थानीय किसान साथियों के साथ मिलकर  धरातल पर व्यवहारिक, प्रायोगिक कार्य करना।
७. ऋषि-कृषि हेतु कृषकों को निःशुल्क उत्तम बैल उपलब्ध करवाना। 

८. ऋषि- कृषि हेतु देसी (परम्परागत) बीजों का संकलन कर किसान साथियों को नि:शुल्क उपलब्ध करवाना।

हमारे अन्य उद्देश्य:-
1. ऋषि- कृषि (गौ- प्रकृति आधारित  खेती) 
१. कृत्रिम हानिकारक रसायनयुक्त उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग रोककर गोमय, जैविक खाद,गोमूत्र और प्रकृति से प्राप्त वनस्पति और खनिज से खाद और कीट खदेड़क तैयार करने और उनके उपयोग की विधि समझाना।
२. गोमय, गोमूत्र और प्राकृतिक वनस्पति की शक्ति से युक्त पोषक तत्वों से भरपूर अनाज, दलहन, तिलहन, फल और सब्ज़ियाँ उत्पन्न करना।
३. मृदा उर्वरता और जल संरक्षण हेतु गोबर, गौमूत्र, वर्मी कम्पोस्ट, और जीवामृत का उपयोग कर मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना। प्राकृतिक तरीके अपनाकर जल संरक्षण और मिट्टी के कटाव को रोकना।
४. क्षेत्रीय गोवंश का संरक्षण करना।
५. बैलों का कृषि और अन्य कार्यों में सदुपयोग को बढ़ावा देना।
६. पर्यावरण संरक्षण हेतु कृत्रिम हानिकारक रसायनों के प्रयोग से होने वाले जल, वायु और मृदा प्रदूषण को रोकना। पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखना और जैव विविधता को संरक्षित करना। 
७. किसानों की आत्मनिर्भरता बढ़ाना बाहरी कंपनियों पर निर्भरता से मुक्त करना तथा गो और प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग कर किसान को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना।
८. सतत और टिकाऊ ऋषि-कृषि प्रणाली विकसित करना जिससे खेत आगामी लाखों वर्षों तक उपजाऊ बने रहे।

हमारे सहायक उद्देश्य:-
१  धेनु धाम फाउंडेशन (३१ वर्षीय गो पर्यावरण और आध्यात्म चेतना पदयात्रा) के माध्यम से गांव-गांव जाकर ऋषि-कृषि का प्रचार करना ऋषि-कृषि करने हेतु प्रोत्साहन दिलाना।
२. दवा देवी फाउंडेशन  के माध्यम से ऋषि-कृषि करने वाले कृषक समूह को बैल उपचार हेतु निःशुल्क औषधि उपलब्ध करवाना।
३. दाता देवी फाउंडेशन के माध्यम से बीज संग्रहालय की स्थापना कराना।
४. दाना देवी फाउंडेशन के माध्यम से दुष्काल के समय ऋषि-कृषि करने वाले किसानों को बैल हेतु घास उपलब्ध करवाना।
५. दृष्टि देवी फाउंडेशन के माध्यम से ऋषि-कृषि समाचारों को प्रकाशित करना और ऋषि-कृषि उत्पादों का प्रचार करना। 
६. ग्वाल शक्ति सेना (gss )और धेनु शक्ति संघ (dss) के माध्यम से ऋषि कृषि कर रहे किसानों की शासकीय समस्याओं का समाधान करवाना।
७. धेनु देवी फाउंडेशन के सहयोग से  ऋषि-कृषि करने वाले किसान समूहों को बैल परिचर्या का निःशुल्क प्रशिक्षण दिलवाना।
८. धेनु धन फाउंडेशन के माध्यम से ऋषि-कृषि करने वाले किसान साथियों द्वारा उत्पादित दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र, अनाज, दलहन, तिलहन, फल और सब्ज़ियाँ को उचित समर्थित मूल्य पर विक्रय हेतु बाजार उपलब्ध कराना तथा उपभोक्ताओं को रोगों से बचाने हेतु उपरोक्त स्वास्थ्यवर्धक पौष्टिक खाद्य सामग्री उपलब्ध करवाना। 
९. धेनु धारा फाउंडेशन के माध्यम से ऋषि-कृषि करने वाले किसान साथियों को जल प्रबंधन का निःशुल्क प्रशिक्षण देना।
१०. धेनु दर्शन फाउंडेशन के सहयोग से किसानों को ऋषि-कृषि हेतु उत्तम बैल निःशुल्क उपलब्ध कराना 

धेनु धरती फाउंडेशन

ऋषि-कृषि की आवश्यकता:-
वर्तमान समय मे पूरी दुनिया मानसिक, शारीरिक, वैचारिक, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से जूझ रही है। इसका प्रमुख कारण है तमोगुण, जो की गोवंश और प्रकृति का सदुपयोग किए बिना हानिकारक कृत्रिम विषैले उर्वरक, कीटनाशक का अंधाधुंध प्रयोग करना। एक के बाद एक लगातार खेत को आराम दिए बिना फसल लेना, लगातार खेती करना, डीजल और विद्युत चलित यंत्र का अधिक और अनावश्यक प्रयोग जिससे तमोगुणी, रोग उत्पन्न करने वाले कृषि और गो कृपा रहित डेयरी उत्पादयुक्त भोज्य पदार्थों का उपयोग है।इनका उपयोग मानव के स्वास्थ्य और मन के लिए तो हानिकारक होता ही हैं। साथ ही साथ प्रकृति और खेतों के लिए भी हानिकारक हैं।इसके कारण खेत बांझ हो रहे हैं। प्रकृति असंतुलित हो रही हैं। इन सब समस्याओं का एक मात्र समाधान है गो
प्रकृति आधारित “ऋषि कृषि “

ऋषि कृषि का परिचय (ऋषि कृषि क्या है)
ऋषि कृषि एक पारंपरिक भारतीय कृषि पद्धति है, जो प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा विकसित की गई थी। यह पूरी तरह से प्राकृतिक, जैविक और पर्यावरण-अनुकूल कृषि प्रणाली है, जिसमें कृत्रिम, हानिकारक, विषयुक्त रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता। इसे आध्यात्मिक कृषि भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें प्रकृति और परमात्मा से जुड़कर खेती करने पर बल दिया जाता है। ऋषि कृषि के मुख्य सिद्धांतो में हानिकारक विषैले कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और संकर बीजों का उपयोग न करके केवल गो -प्रकृति आधारित साधनों से खेती करना। मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए जैविक खाद (गोबर, गौमूत्र, जीवामृत, पंचगव्य) का उपयोग करना, पंचतत्वों का संतुलन बनाये रखने हेतु ऋषि कृषि को पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) के संतुलन के अनुसार ही किया जाता है।
इसमें जल का उचित प्राकृतिक प्रबंधन रहता हैं ।इसमें अधिकाधिक प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग होता हैं, जिसमें मुख्यतः देसी (क्षेत्रीय, प्राचीन नस्ल) के बैल काम में लिए जाते हैं। बैल से हल और अन्य कृषि यंत्र चलाने की परंपरा को बढ़ावा दिया जाता है। 
उन्ही गोवंश के गोबर और गौमूत्र का उपयोग खाद और कीट- खदेड़क के रूप में हो जाता हैं। पारंपरिक और बीज के रूप में देसी बीजों का उपयोग और संरक्षण की प्रणाली अपनाई जाती है, जिससे हाइब्रिड बीजों पर निर्भरता कम हो जाये और आगे निर्भरता पूर्ण समाप्त हो जाये। इसमें सह-फसली और मिश्रित खेती को बढ़ावा दिया जाता है। एक ही खेत में कई फसलों को एक साथ मिलाकर उगाया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे कीट पतंग का प्रकोप कम होता हैं। विविधीकरण करने से कीटों और बीमारियों का खतरा कम होता है। योग और आध्यात्मिकता से जुड़ी कृषि क्रियाओं से खेती को आध्यात्मिक साधना की तरह करने से, भूमि, पौधों और पर्यावरण को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। प्राचीन वैदिक मंत्रों और यज्ञों का प्रयोग भूमि की उर्वरता और पर्यावरण शुद्धिकरण के लिए किया जाता है। जल और पर्यावरण संरक्षण हेतु वर्षा जल संचयन और प्राकृतिक सिंचाई प्रणालियों का उपयोग अधिकाधिक किया जाता है। मिट्टी और जल को शुद्ध और संतुलित बनाए रखना भी इस प्रणाली का महत्वपूर्ण कार्य हैं। ऋषि कृषि पद्धति से उत्पादित अनाज, फल और सब्ज़ियाँ पूरी तरह से प्राकृतिक और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जो कैंसर, हृदय रोग और अन्य बीमारियों का खतरा कम करते है। कम लागत, अधिक उत्पादन की परम्परा को पुनः विकसित किया जाता है। रासायनिक उर्वरकों और महंगे कीटनाशकों की जगह घरेलू जैविक साधनों का उपयोग होता है, जिससे लागत कम होती है।
इससे मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहने से उत्पादन में निरंतरता आती है। पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता का मूल आधार ऋषि कृषि ही हैं। हानि कारक कृत्रिम रसायनों के बिना खेती करने से जल, वायु और भूमि प्रदूषण कम होता है। पक्षी, मधुमक्खियाँ, केंचुए और अन्य लाभकारी जीवों का संरक्षण होता है। ऋषि कृषि केवल खेती का एक तरीका नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली है, जो प्रकृति, आध्यात्मिकता और सतत कृषि को संतुलित करती है। यह भारतीय संस्कृति की प्राचीन विरासत है, जिसे अपनाने से मानव, पर्यावरण और धरती सभी को लाभ मिलता है। धेनु धरती फाउंडेशन इसी दिशा में कार्य करने के लिए दृढ़ संकल्पित है।
आइए, हम सब मिलकर गौ आधारित कृषि (ऋषि कृषि) को अपनाएं और अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य दें।
“गौ माता का करें सम्मान।
ऋषि कृषि है सबसे आसान।।” 
 

हमारी प्रमुख सेवाएं

ऋषि कृषि की पुनः स्थापना

धेनु धरती फाउंडेशन के माध्यम से गोबर, गोमूत्र, बैल और प्रकृति आधारित कृषि विज्ञान (ऋषि-कृषि विज्ञान) को पुनः विकसित करना

ऋषि-कृषि हेतु कृषकों को निःशुल्क उत्तम बैल उपलब्ध करवाना

ऋषि- कृषि हेतु देसी (परम्परागत) बीजों का संकलन कर किसान साथियों को नि:शुल्क उपलब्ध करवाना

फाउंडेशन के सदस्य

स्वामी श्री गोबर गोपाल सरस्वती जी महाराज - प्रधान संरक्षक
अजीत जी शर्मा - (Trustee)
- (Trustee)
- (Trustee)

जय धरती माँ की जय गौ माता, गूँज रहा है मंत्र महान। सुखद सुमंगल विश्व कामना, जीव मात्र का हो कल्याण।